तेरी याद में रोने का जिसमे किस्सा है... तेरी याद में रोने का जिसमे किस्सा है...
वही उम्र का बेहतरीन हिस्सा है। वही उम्र का बेहतरीन हिस्सा है।
इतना सुखी मत करो के भूल जाये और
इनता दुखी भी मत करना के शिकायत की करते रहे।
Friday, March 5, 2010
Friday, January 29, 2010
कुछ लोग जमाने में..
कुछ लोग जमाने में ऐसे भी तो होते हैं
दफ्तर में जो हंसते हैं घर जाके वो रोते हैं
बीवी की नजरों में अच्छे हैं वो शौहर
बच्चों के कपड़ों को, जो शौक से धोते हैं
रातभर बीवी की खिदमत में जुटते हैं
जाते ही वो दफ्तर में आराम से सोते हैं
कुर्सी पर लदे रहना, बस फितरत है इनकी
कुर्सी के ये खटमल, बेपैंदी के लौटे हैं
पंखों में परिंदों जैसी उड़ने की तमन्ना है
ये बात क्या समझेंगे जो पिंजरे के तोते हैं
सीने में हिमालय की कुल्फी के खजाने हैं
क्यों खवाब में चुस्की के पलकों को भिगोते हैं
दफ्तर में जो हंसते हैं घर जाके वो रोते हैं
बीवी की नजरों में अच्छे हैं वो शौहर
बच्चों के कपड़ों को, जो शौक से धोते हैं
रातभर बीवी की खिदमत में जुटते हैं
जाते ही वो दफ्तर में आराम से सोते हैं
कुर्सी पर लदे रहना, बस फितरत है इनकी
कुर्सी के ये खटमल, बेपैंदी के लौटे हैं
पंखों में परिंदों जैसी उड़ने की तमन्ना है
ये बात क्या समझेंगे जो पिंजरे के तोते हैं
सीने में हिमालय की कुल्फी के खजाने हैं
क्यों खवाब में चुस्की के पलकों को भिगोते हैं
Thursday, January 28, 2010
कुछ लोग जमाने में...
कुछ लोग जमाने में ऐसे भी तो होते हैं
दफ्तर में जो हंसते हैं घर जाके वो रोते हैं
बीवी की नजरों में अच्छे हैं वो शौहर
बच्चों के कपड़ों को, जो शौक से धोते हैं
रातभर बीवी की खिदमत में जुटते हैं
जाते ही वो दफ्तर में आराम से सोते हैं
कुर्सी पर लदे रहना, बस फितरत है इनकी
कुर्सी के ये खटमल, बेपैंदी के लौटे हैं
पंखों में परिंदों जैसी उड़ने की तमन्ना है
ये बात क्या समझेंगे जो पिंजरे के तोते हैं
सीने में हिमालय की कुल्फी के खजाने हैं
क्यों खवाब में चुस्की के पलकों को भिगोते हैं
दफ्तर में जो हंसते हैं घर जाके वो रोते हैं
बीवी की नजरों में अच्छे हैं वो शौहर
बच्चों के कपड़ों को, जो शौक से धोते हैं
रातभर बीवी की खिदमत में जुटते हैं
जाते ही वो दफ्तर में आराम से सोते हैं
कुर्सी पर लदे रहना, बस फितरत है इनकी
कुर्सी के ये खटमल, बेपैंदी के लौटे हैं
पंखों में परिंदों जैसी उड़ने की तमन्ना है
ये बात क्या समझेंगे जो पिंजरे के तोते हैं
सीने में हिमालय की कुल्फी के खजाने हैं
क्यों खवाब में चुस्की के पलकों को भिगोते हैं
Tuesday, June 10, 2008
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